जुलाई 26, 2012

बरस जाओ कहद से पहले

उस दिन अखबार मे एक खबर देख कर हैरान हो गया |लिखा था कि ग्रामीणों ने गाँव को जोड़ने वाली कच्ची सड़क को खोद कर उसे खेत की शक्ल दे दी और उसमे कीचड़ बना कर धान की रोपाई कर दी | खबर अनोखी थी पर अपने आप मे कुछ कह रही थी |उसमे आगे लिखा था कि ऐसा इसलिए किया गया है क्योकि बारिश नही हो रही और धान के बीचड़ बेकार हो रहे हैं एवं इस संबंध मे सरकार भी कुछ नही कर रही है | यह कार्य सरकार का ध्यान इस ओर आकृष्ट करने के लिए किया गया है | सरकारी तंत्र तक अपनी बात पहुँचाने यह बड़ा ही कारगर विकल्प था क्योंकि सड़क प्र्यत्यक्ष रूप से जनजीवन को प्रभावित करती है |दिल्ली मे रहने के बाद अपने शहर वापस जाना और वहाँ के आसपास के गावों के बारे मे ऐसी खबरें पढ़कर अनोखी ही लगती हैं इसके साथ ही कौतूहल भी होता है कि ऐन घटनास्थल पर क्या हुआ होगा उस स्थान पर लोगो की भीड़ लग गयी होगी एक तरह का तमाशा बन गया होगा | जैसा कि हमारी फिल्मों ने हमे सिखाया है की अपना देश किस तरह तमाशा प्रधान है जहां छोटी सी बात पर भी बड़ा तमाशा जाम जाता है |इसी आशा के साथ कि वहाँ तो बड़ी भीड़ होगी घटना वाले गाँव क ओर चल पड़ा | हाय रे मेरी निराशा ! वहाँ तो कोई नही था |उस स्थान से सौ कदम आगे बढ्ने पर ही गाँव शुरू होता था सो ग्रामीण अपने अपने घरों मे होंगे | उनसे बात करने पर पता चला कि ये कोई अनोखी बात नही है |इधर तो 2000 ईस्वी के बाद से हर साल बारिश कम ही हो रही है बीच मे एक बार कोशी की भयानक बाढ़ आई थी उस साल तो सबकुछ पानी से ही तबाह हो गया था। हर साल धान की रोपणी के समय अब ऐसा ही रहता है बारिश कम होती है जिसके पास साधन है वह बोरिंग से अपने खेत की पटाई कर धान रोपते हैं । जो गरीब हैं वो दिन रात भगवान से गुहार लगाते हैं कि पानी बरसा दो । फिर भी बारिश नही आती तो कभी कभी सड़क काट कर उस पर रोपणी कर देते हैं ताकि सरकार का ध्यान इस ओर जाए वह खेत मे पानी देने की कोई व्यवस्था करे | पर सरकार ने आज तक तो ऐसा नही किया | पिछले साल जब बलहा वालों ने सड़क काटकर धान की रोपाई की थी तो कुछ लोगों को पुलिस पकड़ कर ले गयी । अब मुझे समझ मे आ रहा था कि वहाँ कोई क्यो नही है । लौटते वक़्त देखा तो लगा की यहाँ पुलिस क्या करने आएगी ये धान कौन सा यहाँ फल फूल जाएंगे । निसंठ जमीन को हल्का सा खोद कर तो इन्हे लगा दिया गया था और यहाँ कौन सी बारिश हो रही है जो ये जीवित रह जाएंगे । फिर बलहा वालों को पुलिस क्यों ले गयी ? होगा कुछ और पुलिस के हजार तिकड़म !दोनों ओर खेत थे पर उनपर हल्की बारिश से उग आए घास की झीनी सी चादरें | दूर एक खेत मे बोरिंग से पानी पटाया जा रहा था साथ ही साथ ट्रेक्टर से जुटाई भी चल रही थी आसपास लोग खड़े थे और ढेर सारे बगुले उड़ उड़ कर आ रहे थे कि पानी भरने से जो कीड़े बाहर आएंगे उन्हें खा सकें । ये बगुले तो कीड़े खा लेंगे पर यहाँ के लोग क्या करेंगे जब बारिश ही नही होगी ! मुझे याद है जिस साल बारिश नही होती थी या कम कम होती थी उस साल मेरे गाँव मे लोग उदास उदास रहते थे | कृष्ण जन्माष्टमी के मेले में कोई उत्साह नही होता था ! और जब कृष्ण की मूर्ति को मेले की समाप्ती के बाद विसर्जित किया जाता था तो उस के गले में धान के बीचड़ की गाँठें बांध दी जाती थी कि संदेश पहुँच जाए की इस साल यहा बारिश नही हो रही अब कुछ करो | बहुत प्रतीकात्मक लगता है ये सब । पर एक ऐसा देश जहां कृषि के योग्य भूमि का बहुत कम हिस्सा सिंचित हो वहाँ तो बारिश ही एक मात्र आधार है । और जब वही न हो तो आँख से आग निकलेगी ही । पानी आकाश से गिरता है और उस पर किसी का अख़्तियार नही है ये सब इसे सहज ही ईश्वरीय बना देता है और साधनहीन निराश लोग सहज रूप से दैवी प्रतीको का सहारा लेने लगते हैं। अब लोगों को लगता है की सरकारें भी उनकी जरूरतों को पूरा कर रही हैं तो वे सरकार के उपकरणो जैसे सड़क आदि का प्रयोग कर अपनी बात पहुँचाने की कोशिश करने लगे हैं | पता नही इस कोशिश का अंजाम क्या हो | हो सकता है बलहा वालों की तरह ये भी पुलिस द्वारा उठा लिए जाएँ ।

हिंदी हिंदी के शोर में

                                  हमारे स्कूल में उन दोनों की नयी नयी नियुक्ति हुई थी । वे हिन्दी के अध्यापक के रूप में आए थे । एक देश औ...