अप्रैल 15, 2014

गुच्ची बाबू


उस आदमी से उसकी जान-पहचान उसके पिता के जीवन बीमा के एजेंट के रूप में ही थी लेकिन छोटे शहरों का चलन कहिए या कि ढंग या कि एक गुण कि यहाँ लोग दूसरों के मामले में हद से ज्यादा दिलचस्पी लेते थे खासकर तब जब उस छोटे शहर में भी आपकी हस्ती किसी कीड़े भर की भी न हो ।

मैट्रिक परीक्षा का रिजल्ट आया था । उस दिन आकाश ढंका था । कभी कभी कुछ बूँदा-बाँदी हो जाती थी ठीक उसकी आँखों की तरह । और मेघ गरज उठते थे उसके पिता की कर्कश और निश्चित तौर पर रूखी आवाज की तरह । वह पास तो हो गया था पर परिणाम उसकी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं आया था । ऐसा नहीं था कि उसे अस्सी-नब्बे के प्रतिशत में अंकों की आवश्यकता थी लेकिन कम से कम प्रथम श्रेणी की उम्मीद तो थी ही ! वैसे भी बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के रहते किसी अस्सी–नब्बे प्रतिशत अंक दुर्लभ ही हैं । वह खुद दुखी था और ऊपर से आसपास हो रहा लानतों से भरा गर्जन । काल बैशाखी की विकरालता न महसूस हो ऐसे में तो !

पिताजी गायों के रहने की जगह की खपड़ैल की छत मरम्मत करवा रहे थे या कर रहे थे यह याद नहीं है पर गुच्ची बाबू एल आई सी एजेंट नीचे खड़े होकर उनसे बात कर रहे थे । पिताजी, गुच्ची बाबू से एक नया बीमा करवाने वाले थे । पहले ही सारी बातें तय हो गयी थी लेकिन उसके परिणाम ने उस एजेंट की आशाओं पर पानी फेर दिया । उसके पिता ने बीमा नहीं करवाया । जिसका एकमात्र कारण था उसके मैट्रिक का परिणाम । वह तो पहले ही दुखी था ऊपर से कई बातें सुनना जब मैट्रिक में फर्स्ट नहीं कर पाया तो आगे क्या करेगा , काम करने वालों की छुट्टी कर के इसको लगा देंगे गाय के काम में । गुच्ची बाबू के मन में अपने कमीशन के न मिलने का दुख जरूर रहा हो लेकिन उन्होने उसका पक्ष रखने की कोशिश की थी । पर पिताजी ! जरा देर के लिए भी सुनने को तैयार नहीं थे । और वह उस नाराजगी की शुरुआत थी जो परिणाम आने के लंबे समय तक बनी रही ।

उस रात उसकी आँखें बहुत बरसी थी दिन भर लटके बादलों की तरह ! रात में कभी नींद आई होगी पर उससे पहले जो बातें चल रही थी उन बातों ने लंबे समय तक सोने नहीं दिया था । यह बात ठीक थी कि वह द्वितीय श्रेणी से पास हुआ था जिसकी उम्मीद उसे भी नहीं थी लेकिन इसमें न वो कुछ कर सकता था न कोई और । माँ पहले भी कहा करती थी तुम पढ़ लिख लोगे तो मुस्लिम के मुंह में आग पड़ जाएगी , तुम्हें कुछ हो जाये तो मेरे मुंह में कालिख-चूना लगा देना । लेकिन उनके कहने का टोन पिता के गर्जन और नाराजगी सा नहीं था । माँ की बहती नाक उसके आँखों के जैसी ही थी । साथ में अपने करीबी दोस्त का चेहरा जो अपनी द्वितीय श्रेणी में ही खुश था और उसके माँ-बाप उससे ज्यादा खुश थे उन्होने लड्डू भी बांटे ।

आज स्थिति साफ उलटी हुई थी ! वह आज उसी बीमा एजेंट के साथ बैठकर अपने जीवन बीमा की बातें कर रहा था । कर क्या रहा था बल्कि उस व्यक्ति को एक बीमा योजना दे रहा था जिसके सामने उसके पिता ने कुछ साल पहले खारिज़ कर दिया था । यह खारिज होने के तमगे से बाहर आकर गुच्ची बाबू के सामने खड़े होने की बात थी ।


वैसे भी वह जिस जगह से आता है वहाँ जीवन बीमा करवाना एक लग्ज़री है । वह अब भी माँ के चेहरे में कालिख-चूना लगा कर उन्हें बिजूका बनाने की नहीं सोच सकता !

हिंदी हिंदी के शोर में

                                  हमारे स्कूल में उन दोनों की नयी नयी नियुक्ति हुई थी । वे हिन्दी के अध्यापक के रूप में आए थे । एक देश औ...