फ़रवरी 03, 2015

बीइंग जजमेंटल


कई बार बहुत ही गंदी चीजों पर आपको यूं ब्लैकमेल किया जाता है कि आप जजमेंटल न हों या आप जजमेंटल क्यों हो रहे हैं ... पर इस AIB के कार्यक्रम को देखकर आप को तुरंत लग जाएगा कि जजमेंटल होना क्यों जरूरी है ... हाँ ठीक है कि आप फिल्म इंडस्ट्री के लोग हैं आपके लिए गालियाँ और भद्दे इशारे उतनी बड़ी चीज नहीं हैं लेकिन आप इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि उन गालियों और इशारों का समाजशास्त्र क्या कहता है और वे अंततः स्त्री के ही खिलाफ़ जाती हैं ।

इस पूरे विवाद के बाद मैंने सोचा कि पहले कार्यक्रम देख लूँ तब कुछ कहूँ ... अभी यू ट्यूब पर मैंने उस पूरे कार्यक्रम को देखा और अंत तक आते आते वह अश्लीलता बर्दाश्त से बाहर हो गयी ..यहाँ मैं जजमेंटल हो रहा हूँ और होना चाहता हूँ । यह मैं पूरे कार्यक्रम के संदर्भ में कह रहा हूँ ... और यदि आप भी देखें तो यकीनन यही कहेंगे ।

अगली बात ये है कि इस पर जब महाराष्ट्र पुलिस कार्रवाई करने का सोच रही थी उस बीच कारण जौहर के ट्वीट्स आ गए इसे जस्टिफ़ाय करते हुए । इसे अभिव्यक्ति की आजादी से भी जोड़ा जा सकता है और व्यक्तिगत आजादी से भी... और कुछ कुछ इसी तरह के संकेत  महाराष्ट्र के सांस्कृतिक मामलों के मंत्री विनोद तावड़े ने भी ट्वीट करके दे दिया कि सरकार 'मॉरल पुलिसींग' नहीं करेगी । भैया एक बात समझ नही आती है कि अश्लीलता पर हमारे दोहरे मानदंड क्यों हैं ?

जब दीपिका पादुकोण पर टाइम्स ऑफ इंडिया लिखता है तो सब अखबार के खिलाफ़ खड़े हो जाते हैं लेकिन जब उसी फिल्म इंडस्ट्री से लोग आकार  'ऑल इंडिया बकचोद' में अश्लीलता फैलाते हैं तो हम झट से अभिव्यक्ति की आजादी की बात ले आते हैं ... आम आदमी तो आम आदमी पुलिस और सरकार तक सॉफ्ट हो जाती है ।
मज़ाक के नाम पर अश्लीलता है और वह भी अभव्यक्ति की आजादी है !  माना कला के नाम पर जरूरी है पर यह कौन सी कला है और इसकी किसे जरूरत है यह जानना है मुझे ।

कहने को यह भी कहा जा सकता है कि ये सारे मज़ाक उन्होने आपस में किए और एक दूसरे पर किए इसलिए किसी और का इससे कोई लेना देना नहीं ... पर साहब एक बात  गौर करने की है कि आप बंद कमरे में तो ऐसा नहीं कर रहे थे कि आपको इस आधार पर भी छुट मिल जानी चाहिए ।
हम वैसे ही उस समय में जी रहे हैं जहां स्त्री के प्रति हिंसा और शोषण बहुत आम है उसमें इस तरह की चीजें और स्क्रिप्ट के नाम पर फिल्मों में ठूँसी जाती गालियां उसमें योगदान ही करती हैं । वे लोग नादान हैं जो अभी भी ये समझते हैं कि इन सबका असर समाज पर नहीं पड़ता या इनको देखता कौन है या कि इससे भी ज्यादा तो समाज में हैं ! दोस्त समाज में सब है पर इसका ये अर्थ नहीं कि हम उसमें और बढ़ोतरी करें और दूसरी बात , इन्टरनेट पर यह उतनी ही सहज रूप में उपलब्ध है जितने कि बच्चों के लिए बबल गम !

नोट : एनडीटीवी की वेबसाइट पर जाकर उनके सर्च वाली जगह में AIB टाइप करें पूरा घटनाक्रम क्रमवार पढ़ने को मिलेगा ... वहाँ इन सबके ट्वीट्स भी हैं ....
यूट्यूब पर उनका अश्लील कार्यक्रम तीन भागों में लगा हुआ है वह भी देखें ... तब शायद हम उस बौद्धिक जकड़न से बाहर निकल पाएँ जो हमें 'जज' करने से रोकता है ... 

हिंदी हिंदी के शोर में

                                  हमारे स्कूल में उन दोनों की नयी नयी नियुक्ति हुई थी । वे हिन्दी के अध्यापक के रूप में आए थे । एक देश औ...