अप्रैल 13, 2015

है तो जिद ही पर ...


बच्चा कभी कभी कौन सी जिद पकड़ लें कह नहीं सकते । कई बार तो ऐसा हो जाता है कि सब एक तरफ और बच्चा एक तरफ । ये निधि है । हमारी भांजी । चाचाजी की नातिन है पर मेरा घर भी उसका उतना ही ननिहाल है जितना कि चाचा का घर । उसने जिद पकड़ ली है यहाँ से जाने की । अपनी माँ के पास जाने की । उसे माँ के पास जाने देने में किसी को कोई दिक्कत नहीं होती लेकिन वह अब यहाँ रहना ही नहीं चाहती । वह चाहती है कि वहीं रह कर पढ़ेगी । यूं तो उसके लिए कोई निर्णय करने या उसके निर्णय में शामिल होनेवाले लोगों में हमारा कोई स्थान नहीं है लेकिन उसके जाने की जिद ने पिछले कुछ दिनों से इन दो घरों में एक अलग ही गम भर दिया है ।
निधि जब काफी छोटी थी तब से यहाँ रह रही है । मतलब वह यहीं बड़ी हुई है और यहीं उसने सुबह उठने से लेकर स्कूल जाना सीखा । उसके सीखने की इस प्रक्रिया ने उसे जो दिया सो दिया पर इन दो घरों को एक अद्भुत आनंद दिया । उसके रहते हुए ‘नाना हौ’, ‘नानी गे’, ‘नुनु मामा रे’ यह सब गूंजना बहुत साधारण बात थी । बाद में गौरव और नन्हुं भी हमारे यहाँ रहने लगे तो उनके लिए लिए निधि ने सम्बोधन से लेकर बाल खींचने , अपने छोटे मुक्के चलाने में कोई अंतर नहीं दिखाया । (गौरव और नन्हुं हमारे मामा के लड़के हैं) मैं और राजीव दिल्ली से आते तब जाकर उसकी इन इनायतों से बावस्ता होते ।

निधि शैतान रही है । पर उसकी शैतानी इतनी भली लगती थी कि हम उसे कुछ नहीं कहते । जब यह स्कूल नहीं जाती थी तब की बात तो अलग ही थी । मजाल कि कोई दिन में सो ले । जहां किसी को सोता देखा नहीं कि उसे उठाने के तमाम प्रयास करने लगती । और उसके बाद तो उठना ही था । फिर गुस्सा भी आता और कभी कभी उसे एक तो हाथ लग भी जाते पर वो हाथ उसके सर या पीठ तक पहुँचते पहुँचते अपने आप हल्के हो जाते थे । उसके बाद शुरू हो जाती थी निधि की धमाचौकड़ी ।

एक समय में उसने बड़ी गंदी आदत पकड़ ली थी । कहीं से भी आती और अपने नाखूनों से काटने लगती । अपने नाना-नानी , मेरे माता-पिता या कि हममें से जो भी वहाँ हो किसी को भी वह नहीं बख़्शती थी । हम सबने काफी उपाय कर लिए कि उसकी काटने की आदत छूट जाये पर कोई सुधार नहीं हुआ । फिर मेरे पिताजी ने एक तरीका निकाला । जहां निधि उनके पास जाती कि वे ही उसे काटने का नाटक करते । बाद में सबने यही किया । दो दिन बीतते न बीतते उसकी यह आदत छूट गयी ।

बीच बीच में सीमा बहन यहाँ सहरसा आती और तीज त्योहार निधि ही गाँव जाती थी उनके पास । माँ का लगाव तो होता ही है । पर स्वयं वह भी नहीं चाहती कि यह बच्ची गाँव में जाकर रहे । उनकी मुख्य चिंता लगातार यह रही है कि उनकी बेटी ठीक से पढ़ लिख ले । बिहार के गाँव गाँव के खाली होकर शहर में केवल इसीलिए शामिल हो रहे हैं कि उनके बच्चों को पढ़ने लिखने की सुविधा मिल पाये । वरना बिहारी शहर कोई औद्योगिक शहर नहीं हैं कि रोजगार के लिए इनकी ओर गाँव से लोग भाग भागकर आयें । अभी भी सीमा बहन यह नहीं चाहती कि निधि वहाँ उनके पास रहने आ जाये । खासकर तब जब वह बड़ी हो रही हो और उसने जिस माहौल में अब तक अपना बचपन बिताया है वह माहौल वहाँ मिलना कठिन हो । लेकिन बच्चे की जिद है ।

निधि ने खुद ही फोन करके अपने पापा को बुला लिया । और वे आ भी गए हैं । आज आलम यह है कि दोनों परिवारों में रह रहे हमलोग, जिनके साथ कल शाम तक वह उसी ठाठ के साथ धूम धड़ाके से मस्ती करती आ रही थी और दोनों घरों को गुलजार करती आ रही थी, उसके दुश्मन हो गए हैं । अभी मैंने कहा कि कुछ दिन रहकर वापस आ जाना । तो इस पर उसने नजरें तरेरी । मैंने फिर से कहा तो उसका जवाब था – ‘चुप्प रह’ ! उसके नाना यह कहकर सुबह काम पर गए हैं कि इसको किसी तरह जाने मत देना । नानी जार-बे-जार रो रही हैं । और कई बार कह रही है कि इसकी किसी जिद को पूरा करने में कमी नहीं की और आज जब मैं चाहती हूँ कि यह मेरे पास रहे तो गुस्से से आँखें दिखाती है और डांटती है । इस महीने के अंत में मेरे भाई का जनेऊ है । निधि उसमें भी रहना चाहती है । वह कल शाम से ही मेरी माँ के पास आ – आकर कह रही है ‘पापा को कह दो वे जनेऊ में मुझे लेकर आ जाएँ ... और जो अभी मेरी माँ को लिवाने जाएगा उसे भी कह देना’ ।

ये बातें मन को भर देती हैं । अभी थोड़ी देर में वह जाने वाली है । मुझे पता है मैं उसके जाते समय वहाँ नहीं रह पाऊँगा , मैं ही क्या जो भी लोग उससे प्यार करते हैं नहीं रह पाएंगे । मेरी माँ को इतनी उम्मीद है कि बहुत जल्द ये लड़की अपने गाँव , अपनी दादी से ऊब जाएगी फिर दौड़ कर वापस आएगी । हम सब इसी उम्मीद के साथ हैं पर अभी तो ऐसा ही है कि यह जा रही है और वापस नहीं आएगी ।


यह दिन आना ही था । लेकिन जल्दी आ जाता तो ठीक था । अब तो हमने मान लिया था कि यह यहीं रहेगी शायद शादी-वादी के बाद जाये । पर अगली कक्षा में यहाँ इसका नाम नहीं लिखवाया जाएगा । हम सबके बीच से इसकी उपस्थिती निकल जाएगी । अब तक तो निधि यहाँ है । इसके बाद जब वह चली जाएगी तब हम उसे याद करेंगे । खासकर दोनों घर एक करने वाली उसकी शैतानी को । ... यह भी पता है हमें कि किसी के चले जाने से कुछ रुकता नहीं है । रुकता भले ही न हो लेकिन दुखता जरूर है ... ! 

हिंदी हिंदी के शोर में

                                  हमारे स्कूल में उन दोनों की नयी नयी नियुक्ति हुई थी । वे हिन्दी के अध्यापक के रूप में आए थे । एक देश औ...